लेखक — तहज़ीब लियाक़त ????️
एक शहर में छोटा सा परिवार रहता था। उस परिवार में मां बाप और दो बच्चे थे। बेटी की उम्र लगभग तीन वर्ष थी और बेटे की उम्र 6 वर्ष थी बेटा 6 वर्ष का हुआ ही था। कि घर में बातें होने लगी उसे बाहर हॉस्टल भेजने की लड़का रोज ये बातें सुनकर निराश होने लगा। वह अकेला कमरे में बैठकर पता नहीं क्या मन ही मन सोचता रहता था। जब शाम को सब खाना खाने बैठते वह भी आकर सबके पास उदास बैठ जाता था। मां बाप उससे पूछते भी थे क्यों उदास हो लेकिन वह अपने मन की बात किसी को भी नहीं कह पाता था। बस वो खाना खाकर फिर उसी कमरे में वापस चला जाता।
थोड़े दिनों बाद मां बाप भी उसकी उदासियों की वजह समझने लगे थे। कुछ दिनों बाद उसके लिए शहर में हॉस्टल का इंतजाम भी हो गया था। धीरे-धीरे सारा सामान पैक होने लगा। सामान पैक होते देख उसका कलेजा बैठा जाता था। वह अपना घर मां बाप अपनी बहन से इस उम्र में दूर नहीं होना चाहता था। शायद उसे उस वक्त मां बाप के प्यार और उनके साथ की जरुरत थी लेकिन होनी को कौन टाल सकता है।
फिर वही हुआ जो होना तय था। मां बाप और बहन उसे हॉस्टल छोड़ने निकल पड़े वह एक बार अपने घर की ओर देखता तो एक बार अपनी बहन को देखता सीने में अपना बचपन दबाए हुए वह हॉस्टल पहुंच गया । कुछ दिनों तक तो उसे घर की यादें सताती रही। लेकिन जैसे जैसे वक्त गुजरता गया वह उस माहोल में ढल गया मां बाप कुछ दिनों में उसके पास आया करते थे और उसे जरूरत की चीजें दे जाते थे। अकेले रहते रहते उसको अकेलेपन की आदत सी हो गई थी। वह अपने मां बाप को भी अब बहुत कम याद करने लगा था। वक्त यू ही बीतता गया लड़का बड़ा हो चुका था। उसने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली नौकरी भी लग गई थी कुछ दिनों बाद घर वापस आया तो बहन बड़ी हो चुकी थी तो उसने अपनी बहन की शादी भी कर दी।
अब परिवार में बचे थे सिर्फ तीन लोग वो और उसके मां बाप कुछ दिनों बाद मां बाप ने अच्छी सी लड़की देख कर उसकी भी शादी कर दी कुछ अरसा बीता ही था। कि उसने अपने मां बाप को वृद्ध आश्रम भेज दिया। मां बाप अंदर से बहुत दुःखी थे उनके मन में सवाल था वो पूछना चाहते थे कि तुमने ऐसा क्यों किया। लेकिन वक्त की कुछ बंदिशें थी वह बेटे से पूछना पाए। उसी आश्रम में ही उनका वक्त गुजरता रहा फिर एक दिन वह उनसे मिलने आश्रम आया कुछ देर बातें यूं ही चलती रही लेकिन मां बाप से रहा नहीं गया उन्होंने उससे पूछ ही लिया बेटा तुमने ऐसा क्यों किया क्या हमारी थोड़ी भी चिंता नहीं हुई। लड़के की आंख में आंसू थे लड़के ने कहा पापा ज्यादा कुछ नहीं बदला जैसा आपने कई वर्षों पहले किया था यह ठीक वैसा ही है आप भी तो मुझे पैसे भेज दिया करते थे और कभी-कभी मिलने भी आ जाया करते थे आप की तरह मैं भी मिलने आ जाता हूं।
शायद मां बाप समझ गए थे हमने इसे वो बचपन वो प्यार नहीं दिया जो इसे मिलना चाहिए था। वो उनके पास से उठकर जाने ही लगा था कि बाप ने कहा ” बेटा तुमने जो भी किया ठीक किया बस एक विनती है कभी अपने बच्चों को बचपन में खुद से दूर मत करना हमें डर है कि जिस गलती की सजा आज हम काट रहे हैं वो सजा कहीं कल तुम्हारे हिस्से ना जाए ये सुनते ही आश्रम में खामोशी छा गई । लेकिन रब की शायद कुछ और ही मर्जी थी। अचानक से बेटा अपने मां बाप से लिपट गया और जोर जोर से रोने लगा उसे सब कुछ समझ आ गया था। वो अपने मां बाप को लेकर घर वापस लौट गया।