नैनी, प्रयागराज,यूपी। जलवायु परिवर्तन एक बड़ा मुद्दा है और उससे भी बड़ी समस्या इसके कारण होने वाली पानी की कमी की है। कृषि क्षेत्र एक गम्भीर समस्या का सामना कर रहा है और पादप प्रजनक जलवायु के अनुकूल किस्मों को विकसित करने के लिए काम कर रहे हैं। इस संदर्भ में जर्मनी के कार्लज़ूए इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के डॉ. माइकल रीमैन द्वारा सैम हिगिनबॉटम यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर, टेक्नोलॉजी एंड साइंसेज (शुआट्स) में एक व्याख्यान दिया गया। वह एक उत्कृष्ट पादप जीवविज्ञानी हैं, जो चावल में अजैविक तनाव सहनशीलता तंत्र पर काम कर रहे हैं। उन्होंने जैकब इंस्टीट्यूट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी एंड बायोइंजीनियरिंग में व्याख्यान दिया, जिसमें नैनी एग्रीकल्चरल इंस्टीट्यूट, बायोलॉजिकल साइंसेज और बायोटेक्नोलॉजी के छात्रों और कर्मचारियों ने भाग लिया।
डॉ. रीमैन ने शुआट्स के शोध क्षेत्रों का दौरा भी किया। इस दौरान उन्होंने जेनेटिक्स और प्लांट ब्रीडिंग के छात्रों और कर्मचारियों के साथ तकनीकी बारीकियों को साझा किया। उन्होंने आईआरआरआई, आईसीआरआईएसएटी के परीक्षणों की सराहना की और लैंडरेस और लघु बाजरा के संग्रह से प्रभावित हुए। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष के संदर्भ में बाजरा के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने जीपीबी प्रमुख के साथ छात्रों के संभावित सहयोग और आदान-प्रदान के बारे में भी चर्चा की।
उनका स्वागत संयुक्त कुलसचिव डॉ. सी. जॉन वेस्ली, फेकल्टी डीन एग्रीकल्चर डॉ. गौतम घोष, डीन एग्रीकल्चर डॉ. बी. मेहरा ने किया। जैविक विज्ञान से डॉ. पी.के. शुक्ला, डॉ. प्रगति मिश्रा, डॉ. त्रिपाठी और जीपीबी विभाग के सभी संकाय सदस्यों ने डॉ. रीमैन के साथ वार्ता में भाग लिया।