AT रिपोर्टर देवेन्द्र कुमार जैन भोपाल मध्य प्रदेश
देश के अलग- अलग राज्यों में चिकनगुनिया बुखार के मामले बढ़ रहे हैं। चिंता की बात यह है कि चिकनगुनिया के वायरस में म्यूटेशन हो रहा है। म्यूटेशन होने के बाद वायरस का नया स्ट्रेन बन गया है। यह स्ट्रेन चिकनगुनिया के सामान्य लक्षण वाला नहीं है। अब लक्षण बदल गए हैं और इनकी वजह से चिकनगुनिया से संक्रमित मरीज को लकवा मारने का भी रिस्क है। मामले की गंभीरता को देखते हुए संक्रामक रोग विशेषज्ञों ने राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (एनआईवी) से इस मामले पर नजर रखने की अपील की है और वायरस में हो रहे बदलावों के बारे में जानकारी जुटाने को कहा है। संक्रामक रोग विशेषज्ञों के अनुसार, चिकनगुनिया, जो कभी जोड़ों के दर्द और बुखार के लिए जाना जाता था, अब वह अलग लक्षण वाला बन रहा है। चिकनगुनिया के ऐसे लक्षण दिख रहे हैं जो पहले कभी नहीं देखे गए हैं। दावा किया जा रहा है कि यह वायरस डेंगू की तरह व्यवहार कर रहा है और ब्रेन पर भी असर कर रहा है। डेंगू विशेषज्ञ के अनुसार चिकनगुनिया के कुछ मरीजों में एक अजीब लक्षण दिख रहा है। मरीजों की नाक काली पड़ रही है। ये लक्षण चिकनगुनिया में पहले कभी नहीं देखे गए हैं. करीब 20 से 30 फीसदी मरीज इन लक्षण के साथ आ रहे हैं। चिकनगुनिया के मरीजों में लकवा मारने का भी रिस्क है। ऐसा इसलिए क्योंकि ये वायरस ब्रेन पर भी असर कर रहा है। डॉक्टरों की रिपोर्ट है कि चिकनगुनिया मरीजों में न्यूरोपैथी तेजी से आम हो गई है, जिससे बड़ी संख्या में मरीजों में स्ट्रोक का भी खतरा है। यह पहली बार है कि इतने गंभीर लक्षण हो रहे हैं। डेंगू की तरह चिकनगुनिया के मरीजों में भी फेफड़ों और पेट में पानी जैसी परेशानी हो रही हैं, जो डेंगू के क्लासिक लक्षण हैं, लेकिन अब चिकनगुनिया के मामलों में देखे गए हैं।इससे भी खतरनाक यह है कि चिकनगुनिया के मरीजों में प्लेटलेट काउंट में अचानक गिरावट आ रही है। ऐसा डेंगू में ही देखा जाता था, लेकिन अब ये चिकनगुनिया में भी हो रहा है। पहले चिकनगुनिया के मरीजों मेंप्लेटलेट्स को 80,000 से 90,000 से नीचे गिरते नहीं देखा जाता था, लेकिन अब वे 5,000 से भी नीचे जा रहे हैं। जो जानलेवा हो सकता है।महामारी विशेषज्ञ बताते हैं कि लंबे समय तक खुद को जिंदा रखने के लिए वायरस खुद में बदलाव करता है। इसको म्यूटेशन कहते हैं। म्यूटेट होने के बाद वायरस का नया स्ट्रेन बनता है जो पहले से अलग होता है। नए स्ट्रेन के लक्षणों में बदलाव होता है और ये पहले वाले स्ट्रेन से कम या ज्यादा खतरनाक हो जाते हैं। हो सकता है कि चिकनगुनिया के वायरस में जो बदलाव हो रहा है उस कारण इसके लक्षण बदल रहे हैं और ये गंभीर हो रहे हैं। ऐसे में बहुत जरूरी है कि नए लक्षणों वाले मरीजों के सैंपलों की जांच बड़े स्तर पर हो और यह पता चल सके कि स्ट्रेन कौन सा है और इसको कैसे कंट्रोल किया जा सकता है।
